उत्तराखंड के हर तबके ने प्रदेश में एक मजबूत भू कानून की वकालत की है। धामी सरकार ने भू कानून पर विचार के लिए एक समिति गठित की है। आपको बता दें के संविधान के अनुच्छेद 7 और 8 के मुताबुक भूमि राज्यों का विषय है इसलिए राज्य सरकार भू कानून पर किसी भी तरह का संशोधन कर सकती हैं।
पहले आपको बताते हैं कि उत्तराखंड का मौजूदा भू कानून क्या है।
भू कानून का पूरा नाम उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम 1950 है। इस कानून में जमीन के उपयोग और खरीद फरोख्त के नियम तय होते हैं।
2018 में भू कानून की दो धाराओं में संशोधन किया गया , जिसके विरोध में आवाजें उठ रही हैं। इनके मुताबिक
UPZLR एक्ट यानी भू कानून की धारा 143 (क) के तहत राज्य में कृषि भूमि खरीदने पर उसका स्वत ही लैंड यूज बदल जाएगा।
आसान शब्दों में कहें तो पहले केवल मैदानी क्षेत्रों में ही उद्योग लगाए जा सकते थे। अब संशोधन के बाद पहाड़ी जिलों में भी शिक्षण संस्थान, चिकित्सा संस्थान, अस्पताल या सर्विस व हॉस्पिटैलिटी से जुड़े उद्योग लगा सकते हैं।
संशोधन में यह भी स्पष्ट है कि 12.5 एकड़ तक भूमि खरीदने डीएम स्वीकृति देंगे, जबकि इससे अधिक भूमि खरीदने के लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी। इससे पहले भी भू कानून में दो बार साल 2003 और साल 2007 में संशोधन हो चुके हैं।
इस देश में हिमाचल के भू कानून की खूब चर्चा होती है। आइए आपको बताते हैं हिमाचल का भू कानून क्या है, औऱ लोग इसी तर्ज पर उत्तराखंड में भी सख्त भू कानून की मांग क्यों कर रहे हैं।
हिमाचल के भू कानून का नाम हिमाचल प्रदेश काश्तकारी एवं भू-सुधार अधिनियम 1972 है। इस कानून की धारा 118 के तहत कोई भी कृषि भूमि गैर कृषि कार्य के लिए नहीं बेची जा सकेगी।
अब सवाल उठता है कि क्या सख्त भू कानून से उत्तराखंड में जमीनें बची रहेंगी, क्या पलायन रुक सकता है?
एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 20 साल में 1.22 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि कम हुई है। आप सोचिए, साल 2000 में कृषि का कुल क्षेत्रफल 7.70 लाख हेक्टेयर था जो आज घटकर 6.48 लाख हेक्टेयर हो गया है। पहाड़ों में 3.50 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि थी जबकि मैदानों में 2.98 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि ही बची है।
खेती का आलम ये है कि पहाड़ों में छोटी और बिखरी जोत हैं। 91 फीसदी लघु औऱ सीमांत किसान हैं। पहाड़ों में केवल 13 फीसदी जमीन पर ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। जंगली जानवर फसल नुकसान पहुंचा रहे हैं। फसल हो भी गई तो बाजार उपलब्ध नहीं है। शायद इसीलिए पहाड़ के लोग खेती से मुहं फेर रहे हैं।
भू कानून के लिए सुभाष कुमार कमेटी पर अब सबकी नजरें टिकी हैं। समिति को एक मजबूत भू कानून के साथ साथ इन सवालों के भी जवाब तलाशने होंगे। पहला – कृषि जमीन को बेचने पर रोक लगे, औऱ बहुत जरूरी हो तो उतनी ही बंजर जमीन को उपजाऊ बनाया जाए।
दूसरा खेती को जंगली जानवरों से बचाने के ठोस उपाय किए जाएं।
तीसरा जो जमीन बची है, उसे उपयोगी कैसे बनाया जाए, ताकि लोग बेचने को मजबूर न हों।
चौथा – सीमांत क्षेत्रों में किसी भी तरह की जमीन न बिके।
पांचवां – जिस प्रयोजन हेतु जमीन दी गई है, वह केवल उसी प्रयोजन के लिए इस्तेमाल हो। और अगर ऐसा नही होता तो जमीन स्वत ही सरकारके पास आ जाए।
छठा- एक निश्चित अवधि के लिए जमीन को लीज़ पर देने की व्यवस्था हो।
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