1962 के रेजांगला युद्ध में कुमाऊं रेजिमेंट ने दिखाया था अदभुत शौर्य, रेलवे ने वीरों को समर्पित रेजांगला लोकोमोटिव इंजन को दिखाई हरी झंडी

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NATIONAL DESK: 1962 रेजांगला युद्ध के नायको को समर्पित नए रेलवे इंजन को जनता को समर्पित कर दिया गया है। ब्रिगेडियर, कुमाऊँ रेजिमेंट संजय यादव, वी.एस.एम. एवं मंडल रेल प्रबंधक रेखा यादव ने इज्जतनगर रेलवे स्टेशन पर रेजांग ला सिरीज के पहले लोकोमोटिव को 18 नवंबर को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। यह लोकोमोटिव कुमाऊँ रेजिमेंट के युद्ध नायकों को समर्पित है और उन वीर सैनिकों को श्रृद्धांजलि अर्पित करता है जिन्होंने राष्ट्र की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी।

18 नवंबर को रेजांग ला डे समारोह को संबोधित करते हुए ब्रिगेडियर संजय यादव, वी.एस.एम. ने सशस्त्र बलों के बलिदानों को पहचानने और उनका जश्न मनाने में भारतीय रेलवे के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने ऐसे वीरतापूर्ण कार्यों को याद रखने के महत्व को रेखांकित किया, जिससे सभी नागरिकों में गर्व और जिम्मेदारी की भावना जागृत हो सके। इस लोकोमोटिव को इन वीर योद्धाओं को समर्पित करके, भारतीय रेलवे और भारतीय सेना उनकी विरासत को संरक्षित करने और आने वाली पीढ़ियों को उनके देशभक्ति और शौर्य की कहानियों से प्रेरित करने का उद्देश्य रखते हैं। यह पहल भारतीय सेना और भारतीय रेलवे की उस साझा प्रतिबद्धता का प्रमाण है जो राष्ट्र और इसके रक्षकों के सम्मान को बनाए रखने के लिए है।

मंडल रेल प्रबंधक सुश्री रेखा यादव ने अपने संबोधन में कहा कि रेलवे एवं सेना का प्रयास था कि इसके जरिये लोगों को चीन युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए शहीदों के बारे में जानकारी दी जाये। यह इंजन मालगाड़ी में लगकर देश के विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर जायेंगे और वहाँ रिजांग ला के वीर जवानों की गौरवगाथा से लोगों को अवगत करायेंगे। मंडल रेल प्रबंधक ने आगे बताया कि यह पहल पूर्वोत्तर रेलवे के इज्जतनगर मंडल द्वारा की गई है। जोकि भारतीय सेना और नागरिकों के बीच मजबूत संबंधो को रेखांकित करती है।

 

रेजांगला युद्ध की शौर्यगाथा

1962 के भारत चीन युद्ध में नवंबर का महीना बेहद खास है। नवंबर का महीने भारतीय सैनिकों की वीरता, अद्भुत पराक्रम औऱ बलिदान को समेटे हुए है। नवंबर की कंपकंपाती सर्दी में बॉर्डर पर चीन के आक्रमण को ध्वस्त करते हुए भारतीय रणबांकुरों ने वीरता के कई ऐसे इतिहास लिखे, जो सदियों तक याद किए जाएंगे। 17 नवंबर 1962 को नूरानांग की लड़ाई में महावीर चक्र विजेता राइफलमैम जसवंत सिंह ने अकेले 300 चीनियों को मौत के घाट उतारकर अपना सर्वस्व बलिदान दिया था। उसके एक दिन बाद ही 18 नवंबर को रेजांग-ला दर्रे में भी वीरता और शौर्य की ऐसी ही अद्भुत कहानी लिखी गई। रेजांगला (Indo-china war 1962, Rezang La War) की इस लड़ाई को लीड कर रह थे भारतीय सेना के मेजर शैतान सिंह, जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया।

करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर लद्दाख के बर्फीले क्षेत्र में 18 नवंबर की सुबह चीनी सैनिकों ने रेजांग ला के चुसुल सेक्टर में हमला कर दिया। भारत 1962 के युद्ध में पहले ही बड़ा नुकसान झेल चुका था। रेजांगला में 13-कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी तैनात थी, जिसका नेतृत्व कर रहे थे, मेजर शैतान सिंह। अल सुबह हुए दुश्मन के हमले को देखते हुए फौरन मेजर शैतान सिंह ने चार्ली कंपनी के 120 जवानों को 3 टुकड़ियों में बांट दिया। अब तक यह इकलौता इलाका था जो भारत के कब्जे में था।

 

दुश्मन की फायरिंग होते ही भारतीय जवानों ने तीन तरफ से उसका मुंहतोड़ जवाब देना शुरू कर दिया। जंग में हमारे 5 सैनिक शहीद हो गए, लेकिन चीनियों को भी बड़ा नुकसान हुआ। संदेश आया कि करीब 1200 चीनी सैनिक उनकी तरफ आ रहे हैं, लिहाजा मेजर चाहें तो पोस्ट छोड़कर पीछे हट जाएं। लेकिन मेजर ने पीछे हटने से साफ इनकार कर दिया। मेजर को पता था कि यह वक्त अंतिम रण का है, लिहाजा एक एक सैनिक का हौसला बढ़ाते रहे। गोलीबारी जारी रही और चीनी सैनिक पीछे हट गए। लेकिन थोड़ी देर बाद बंकर पर एक गोला आकर गिरा। हमारे सैनिकों का असलहा खत्म हो रहा था। मेजर ने आदेश दिया कि एक गोली से एक चीनी सैनिक को मारो और उनके हथियार छीन लो।

इसी बीच मेजर शैतान सिंह की बांह में शेल का टुकड़ा लगा। एक सिपाही ने उनके हाथ में पट्टी बांधी और आराम करने के लिए कहा. पर घायल मेजर ने मशीन गन मंगाई और उसके ट्रिगर को रस्सी से अपने पैर पर बंधवा लिया. उन्होंने रस्सी की मदद से पैर से फायरिंग शुरू कर दी। तभी एक गोली मेजर के पेट पर लगी। जख्मी होने के बाद भी मेजर पूरी ताकत से लड़ रहे थे औऱ जवानों का हौसला बढ़ा रहे थे। भीषण जंग में हताहत होने से पहले भारतीय सैनिक चीन पर काल की तरह टूट रहे थे।

युद्ध के चंद महीनों बाद जब वहां खोजबीन शुरू हुई तो मेजर शैतान सिंह का शव पैर में मशीनगन बांधे बर्फ में पड़ा था। बर्फ में भारतीय जवानो के भी शव थे। इस लड़ाई में चार्ली कंपनी के 114 सैनिक शहीद हुए थे, जबकि 5 युद्धबंदी बनाए गए। वीरता और पराक्रम को देखिए, हमारे 120 सैनिकों ने चीन के 1300 सैनिकों को मौत के घाट उतारा था। यहां चीन की फौज एक इंच भी आगे नही बढ़ पाई ।

 

युद्धभूमि में अदम्य साहस दिखाने के लिए मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया, जबकि इस टुकड़ी के 5 जवानों को वीर चक्र और 4 को सेना मेडल मिला। रेजांगला की लड़ाई आज भी अदभुत पराक्रम और शौर्य के लिए जानी जाती है।

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