पीएम मोदी की बात पर कितना खरा उतरे हम? पहाड़ के काम कब आएगा पहाड़ का पानी, पहाड़ की जवानी? खास फैक्ट शीट आपके लिए

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर कहा करते हैं कि उत्तराखंड को अग्रणी राज्य बनाने के लिए हमें पहाड़ का पानी भी और पहाड़ की जवानी भी यहां रोकना होगा। मतलब कि पहाड़ में स्वरोजगार से जोड़कर युवाओँ को यही रोकना होगा। औऱ प्रदेश की प्रचुर जल संपदा का उचित संदोहन करना होगा।

लेकिन जब देवभूमि डायलॉग ने प्रधानमंत्री मोदी के इस नारे का विश्लेषण किया तो एक अलग हकीकत सामने आई। न तो पहाड़ का पानी, न तो पहाड़ की जवानी और न ही यहां की मिट्टी पहाड़ के काम आ पा रहा है। यहां हमने तीन पैरामीटर, हमारे वोटर्स की संख्या, जल संसाधनों का उपयोग, और मृदा क्षरण के आंकड़ों के आधार पर ये बात कही है।

सबसे पहले बात करके हैं चुनाव आयोग के लेटेस्ट आंकड़े की। जिसमें कहा गया है कि प्रदेश में करीब साढ़े तीन लाख मतदाता बढ़े हैं। प्रदेश में 93 हजार सर्विस वोटर समेत कुल 80 लाख मतदाता हो गए हैं। लेकिन जब हम जिलेवार विश्लेषण करते हैं तो चौंकाने वाली बात सामने आती है। यानी कुल  80 लाख मतदाताओँ में से करीब 51 फीसद मतदाता प्रदेश के 3 मैदानी जिलों यानी देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिलों में हैं। जबकि शेष 10 पहाड़ी जिलों में 49 फीसदी मतदाता हैं। संदेश साफ है कि पहाड़ों से पलायन नही रुका है। जो भी वोटर बने हैं वो पहाड़ों से मैदानी जिलों में पलायन कर गए हैं। यानि पहाड़ में यहां की युवाशक्ति टिक नही पाई है।

 

3 मैदानी जिलों में 51% वोटर

देहरादून -18%

हरिद्वार 17.4%

ऊधमसिंह नगर 15.7%

 

शेष 10 जिलों में 49% वोटर

नैनीताल       9.6%

पौड़ी          7.2%

अलमोड़ा       6.8%

टिहरी         6.5%

पिथौरागढ़      4.7%

चमोली        3.7%

उत्तरकाशी      2.9%

बागेश्वर       2.7%

चंपावत        2.5%

रुद्रप्रयाग       2.4%

अब पहाड़ के पानी वाले पहलू पर भी गौर कर लें। उत्तराखंड में 917 छोटे बड़े ग्लेशियर हैं, जिनसे गंगा यमुना समेत सैकड़ों छोटी बड़ी नदियां निकलती हैं। लेकिन इन नदियों से पहाड़ की प्यास बुझाने क प्रयास किसी भी सियासी दल ने नहीं किया है। पहाड़ में आज भी 54 फीसद कृषि भूमि है, लेकिन केवल 13 फीसद जमीन को सिंचाई के लिए नदियों का पानी मिल पाता है। इसी तरह हमारी हाइड्रोपावर कैपेसिटी करीब 27 हजार मेगावाट के करीब है। लेकिन हम इसके 6वे हिस्से का भी प्रयोग नही कर पाए। हम केवल 4000 मेगावाट तक ही बिजली उत्पादन कर पाते हैं। यानी पहाड़ के पानी का भी हम पहाड़ क विकास में इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।

यही नहीं पहाड़ की मिट्टी भी यहा नही टिक रही। करीब 70% कृषि भूमि में मिट्टी का गंभीर क्षरण हो रहा है। प्रति हेक्टेयर 15 टन से ज्यादा मिट्टी का क्षरण हो रहा है। जिसका सीधा असर कृषि उपज पर हो रहा है। मृदा क्षरण से सालाना 13 मिलियन टन उपज कम हो रही है।

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