महंगाई डायन खाय जात है…ये बात हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि देहरादून के बाजारों में आज टमाटर 60 से 80 रुपए किलो बिक रहा है, प्याज 45 से 50 रुपए किलो बिक रहा है, सरसों तेल 190-200 रुपए किलो है , दाल 110 रुपए किलो मिल रही है, आटा 31 रुपए किलो है, चाय- 500 रु. किलो, सिलेंडर 920 का हो गया है। इतना ही नहीं देहरादून में आज की तारीख में पेट्रोल 102 रु. लीटर हो गया। लोगों का कहना है कि खाने पीने की चीजें तो काफी समय से चढ़ रही थी, पिछले एक दो हफ्ते में सब्जियों की कीमतों में अचानक उछाल आया है। गैस सिलेंडर पहले से ही महंगा है। ऐसे में किचन का बजट पूरी तरह से बिगड़ गया है। सब्जी विक्रेताओं का कहना है कि डीजल की बढ़ती कीमतों से मंडी में भी सब्जियां महंगी आ रही हैं। स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि भारी बारिश औऱ आपदा के दौर में फल औऱ सब्जियों की कीमतें बढ़ी हैं, जिसका सभी ग्राहकों पर असर पड़ा है।
देवभूमि डायलॉग खास फैक्ट चेक कार्यक्रम में आपको बता रहा है कि महंगाई रोकने के लिए सरकार के पास क्या उपाय हैं औऱ सरकारी आंकड़ों में महंगाई का कितना असर है।
देश में महंगाई नापने के दो बड़े मानक हैं। पहला है थोक मूल्य सूचकांक और दूसरा है उपभोक्ता मूल्य सूचकांक।
अब जरा महंगाई की दरों पर भी नजर डाल लें…पहले हर हफ्ते महंगाई की दरों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक सामने आता था।
लेकिन अब ये दर एक महीने के अंतराल पर जारी हो रही है। जनता भले ही त्रस्त हो, लेकिन सरकारी आंकड़े मानते हैं कि महंगाई नियंत्रण में है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक मई 2021 में महंगाई दर 6.30 फीसदी थी। जून में यह 6.26 % जुलाई में 5.59 %, अगस्त में 5.5 % थी। सितंबर में महंगाई दर घटकर 4.35 फीसदी रह गई है। सरकार के मुताबिक सितंबर 2020 में महंगाई दर 7.27 फीसदी थी, इस लिहाज से इस वर्ष महंगाई नियंत्रण में है।
महंगाई काबू करने का तंत्र
मगर सरकार के पास एक बहुत बडा तंत्र काम करता है, जो महंगाई डायन को काबू करने का काम करता है।
पहला तंत्र है, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अधीन एक दाम नियंत्रक सेल काम करता है। इस नियंत्रक सेल के दो बहडे काम हैं…पहला 17 आवश्यक वस्तुओं के थोक और खुदरा मूल्य पर रोजना और साप्ताहिक नजर रखना। और दूसरा, मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन साधना, ताकि जनता को उचित दामों पर जरूरी साजो समान मिले।
महंगाई को नियंत्रित करने का दूसरा तंत्र है वित्त मंत्रालय के आर्थिक विभाग के तहत आने वाला दाम नियंत्रक सेल। इसका भी काम भी कीमतों को नियंत्रित करना है। पता नहीं अब ये दोनों सेल क्या काम करते हैं। महंगाई को नियंत्रित करने का तीसरा तंत्र है, मंत्रियों का समूह। महंगाई पर इस समूह की भी पैनी नजर होती है। चौथा तंत्र है सचिवों की समिति, जिसकी अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करते है। पता नहीं ये तंत्र भी कहां सोया है। कायदे से इसको महंगाई रोकने के लिए दीर्घकालिक योजनाएं बनानी थी। महंगाई रोकने का पांचवा तंत्र हैं, कैबिनेट कमेटी ऑन प्राइसेस यह तंत्र भी महंगाई कम करने के लिए खूब माथापच्ची करता है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने इस कमेटी को खत्म कर दिया था। अब ये फैसले कैबिनेट कमेटी ऑन इकोनॉमिक अफेयर्स में लिए जाते हैं।
इसमें कोई दोराय नहीं कि मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में महंगाई को काफी हद तक नियंत्रित रखा। लेकिन आज के हालात में महंगाई बेकाबू हो रही है।
अब बात करते हैं कानून की। महंगाई डायन को डराने के लिए दो कानून भी हैं। पहला, आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955, औऱ दूसरा प्रिवेंशन आफ ब्लैक माकेर्टिक एक्ट 1988। इन कानूनों के जरिए राज्य सरकारें जमाखोरों पर नकेल कस सकती हैं, मगर होता कुछ नहीं।
इतना ही नहीं महंगाई कम करने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया मौद्रिक नीति का इस्तेमाल करता है और सरकार राजकोषीय उपायो से महंगाई डायन को थामने की कोशिश करती है। इसके अलावा राज्य सरकारें भी मुख्य सचिव के नेतृत्व में भी महंगाई पर नियंत्रण के उपाय करते हैं।
महंगाई बढ़ने के कारण
महंगाई बढ़ने के जो बडे कारण हैं, उनमें मांग औऱ पूर्ति में असंतुलन सबसे बडा कारण है। इसके अलावा फसलों का नुकसान होना भी एक कारण है। डीजल के दाम बढ़ने से भी खाद्य सामग्री का ट्रांसपोर्ट महंगा हो जाता है। जमाखोरी और कालाबाजारी से भी जरूरी वस्तुओं के दाम बढ़ जाते हैं।
जाहिर है सरकारों को महंगाई के चलते कई बार बडी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी है। वर्तमान सरकार इसे भली भांति परिचित है। हम आशा करते हैं कि जल्द महंगाई नियंत्रण में आएगी।
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