पहाड़ के युवाओं की मुश्किल, रोजगार के लिए मिल रही मौत, लचर कानून व्यवस्था से अपराधी बेखौफ

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Dehradun:  उत्तराखंड का उदय होने के साथ ही यहां के लोगों में उम्मीद जगी थी, पहाड़ों का विकास होगा, अच्छे स्कूल, अस्पताल होंगे, रोजगार के अवसर होंगे। लेकिन आलम ये है कि रोजगार की तलाश में घर से बाहर जाने वाले युवाओं को मौत मिल रही है। अंकिता भंडारी के दर्दनाक कत्ल के बाद से युवाओं के साथ अपराधों का ये सिलसिला बदस्तूर जारी है।

अंकिता गंगा भोगपुर के एक रिजॉर्ट में रिसेस्पनिस्ट थी। छोटी सी जॉब के लिए घर से बाहर निकली थी, लेकिन दरिदों ने रिजॉर्ट को ही उसकी आखिरी सफर बना दिया। बागेश्वर जिले का कमलेश जिसके पास एनसीसी का सी सर्टिफिकेट था, फिजिकल टेस्ट में भी उसके 100 नंबर थे, फिर भी अग्निवीर की मेरिट लिस्ट में उसका नाम नहीं दिया गया, नतीजा कमलेश ने जहर पीकर मौत को गले लगा लिया। अग्निवीर की भर्ती के लिए कोटद्वार गया उत्तरकाशी का युवा केदार भंडारी घर नहीं लौट पाया। पुलिस कह रही है कि कमलेश चोरी करके भाग रहा था और गंगा में छलांग लगा दी, लेकिन पुलिस ये थ्योरी किसी के गले नही उतर रही। केदार गंगा में कूदा था तो उसकी बॉडी अब तक मिली क्यों नहीं?

रोजगार के लिए मौत जैसे अपराधों की ये फेहरिस्त लंबी है। चमोली जिले का युवा विपिन रावत देहरादून में लैब टेक्निशियन का काम करता था। रात को खाना खान रेस्टोरेंट गया, तो वहां एक रसूखदार के बेटे से पंगा हो गया। मामूली बात पर विपिन की इतनी बुरी तरह पिटाई कर दी गई कि उसने अस्पताल में दम तोड़ दिया। पुलिस आरोपी को पकड़ने के बजाए समझौते का दबाव बनाती रही। चौतरफा दबाव और मीडिया में हो हल्ला होने के बाद आरोपी को पकड़ा गया। पौड़ी गढ़वाल के नितिन भंडारी की भी ऐसी ही बदकिस्मत कहानी है। नितिन रुड़की की एक दवा कंपनी में काम करता था। लेकिन अपराधियों ने बिना किसी बात के नितिन की हत्या करके शव को अनाज की टंकी में छुपा दिया। जिन किराएदारों पर हत्‍या का आरोप है उनका मकान मालिक ने सत्‍यापन भी नहीं कराया था।

इन सभी घटनाक्रमों में एक बात कॉमन है। वो है, रोजगार की तलाश में घर से निकले युवाओं को मौत मिली। इन घटनाओं ने कानून व्यवस्था पर तो गंभीर सवाल खडे किए ही हैं, ये बात भी साफ कर दी कि सरकार युवाओं के लिए कितनी गंभीरता से सोचती है। रोजगार उत्तराखंड में बहुत बड़ा मुद्दा रहा है। बावजूद इसके चुनाव के वक्त ये बड़ा मुद्दा नहीं बन पाता। अनुमान के मुताबिक उत्तराखंड के सेवायोजन दफ्तरों में 8 लाख 64 हजार से ज्यादा बेरोजगार पंजीकृत हैं। सरकारी नौकरी की आस रखने वालों के सपनों पर UKSSSC भर्ती घोटाला, विधानसभा भर्ती घोटाला कालिख पोत देते हैं। भाई भतीजावाद और भ्रष्टाचार से रोजगार की उम्मीद क्षीण होती जाती है। ऐसे में निजी क्षेत्र में रोजगार का रास्ता बचता है। लेकिन युवा वहां कदम बढ़ाते हैं तो अपराध उनका हौसला तोड़ देता है। पर्वतीय क्षेत्रों में बेहतर शिक्षा, कोचिंग और नौकरी के अवसर न होने के कारण अपने भविष्य के लिए युवा शहरों का रूख कर रहे हैं। लेकिन शहरों में उनके साथ क्या हो जाता है, ये बताने के लिए ऊपर के उदाहरण काफी हैं। आखिर युवा जाएं तो जाएं कहां?

 

 

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