जान जोखिम में डालकर पूर्व सैनिक के शव को अंतिम संस्कार के लिए ले गए दानीजाला के लोग, हर समय बना रहता है हादसे का खतरा
HALDWANI: 1971 के युद्ध में अपनी वीरता कालोहा मनवाया औऱदुश्मन के दांत खटच्टे किए। लेकिन नसीब कहें या सिस्टम का ढीलापन, जीवन की सांझ ढली तो अंतिम यात्रा में कंधा देने के लिए लोगों को जान जोखिम में डालनी पड़ी। हल्द्वानी से सटे दानीजाला गांव के वीर सैनिक गोपाल जंग बस्नेत की कुछ ऐसी ही कहानी है।1971 में शामिल रहे वीर योद्धा के शव को अंतिम संस्कार के लिए जान जोखिम में डालकर ट्रॉली के सहारे ले जाना पड़ा। वजह है, यहां का संपर्क पूरी तरह कटना। लोगों की मांग बस इतनी सी है कि यहां दशकों से एक अदद झूला पुल तक नहीं बन सका।
हल्द्वानी से महज 5 किलोमीटर दूरी पर रानीबाग के दानीजाला गांव के लोग दशकों से गौला नदी पर एक पुल की मांग कर रहे हैं। लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई। झूला पुल अब जर्जर हो गया है जिसके चलते गौला नदी पार करने के लिए लोगों को जान जोखिम में डालकर ट्रॉली से आवाजाही करनी पड़ रही है। 12 सितंबर को सैनिक गोपाल बस्नेत का निधन हुआ तो शव को रानीबाग श्मसान घाट ले जाने के लिए स्थानीय लोगों को जान जोखिम में डालनी पड़ी। मूसलाधार बारिश के बीच स्थानीय लोगों ने शव को किसी तरह ट्रॉली के सहारे उफनाती गौला नदी के पार कराया। बारिश के बीच ही उनका अंतिम संस्कार किया गया।
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दानीजाला के ग्रामीणों ने नाराजगी जताते हुए सरकार पर आरोप लगाया है कि दशकों से सरकार उनके गांव की उपेक्षा कर रही है। जिसके चलते उन्हें कई तरह की परेशानियां हो रही हैं। ग्रामीणों ने बताया कि यहां 20 परिवार रहते हैं, लेकिन फिर भी आज तक नदी पर झूला पुल को लेकर पूरे गांव की दशकों की मांग अधूरी ही है। ग्रामीणों का कहना है कि अन्य दिनों में वो नदी को पैदल पार करते हैं, लेकिन बरसात में पानी बढ़ जाता है, जिससे उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वे लंबे समय से झूला पुल बनाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी मांगों को अनसुना कर दिया जाता है। रस्सियों और ट्रॉली के सहारे आवाजाही में हर समय हादसे का खतरा बना रहता है।