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तेल की कीमतों का हमारे जनजीवन पर सीधा असर पड़ता है। बढ़ते तेल के दाम हमारे बजट पर सीधा असर डालते हैं। एक आम व्यक्ति केलिए जानना बहुत जरूरी हो जाता है कि दरअसल ये तेल का खेल है क्या? आइये सिलसिलेवार ढंग से इसे समझते हैं।
सबसे पहले आपको ये बताना जरूबरी हो जाता है कि अपनी खपत का हम 85 फीसदी तेल आयात करते हैं। मतलब भारत अपनी खपत का केवल 15 फीसदी उत्पादन करता है।
इस समय राजधानी देहरादून में घरेलू गैस सिलेंडर 919 रुपए का बेचा जा रहा है।पेट्रोल 101.58 रु. प्रति लीटर है, जबकि डीजल 95.04 रु. प्रति लीटर है।
लेकिन मेट्रो सिटी में तेल के दाम और भी ऊंचे हैं। दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 105.49 रुपए प्रति जबकि मुंबई में 111.39 रु. प्रतिलीटर तक पहुंच चुकी है। भोपाल में तो पेट्रोल 114 रु. प्रति लाटर पहुंच चुका है।
अब जरा ये देख लेते हैं कि पेट्रोल और डीजल की कीमतें तय कैसे होती हैं। आखिर 45 रुपए लीटर का कच्चा तेल हमारे पेट्रोल पंप तक आते आते कैसे 105 रुपए का हो जाता है। 16 जून 2017 से पेट्रोल और डीजल की कीमतों का दैनिक आधार पर मूल्य तय किया जाता है।
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45 रुपए का तेल 57 रुपए टैक्स
आज 16 अक्टूबर की बात करें तो क्रूड ऑयल की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 85 डॉलर/बैरल के आसपास है। एक बैरल का मतलब होता है करीब 159 लीटर, और एक डॉलर आज की तारीख में 75 रुपए के आसपास है। इस गणित के हिसाब से एक लीटर कच्चा तेल करीब 45 रुपए का पड़ रहा है। भाड़ा जोड़ कर एक लीटर कच्चा तेल करीब 46 रुपए का हो जाता है। सरकार इस पर करीब 32.90 रुपए का उत्पाद शुल्क लगाती है
साथ ही इस समय 3.88 रुपए डीलर कमीशन जोड़ा जाएगा सरकार तेल पर करीब 24.34 रुपए का वैट वसूल रही है। इस तरह एक लीटर पेट्रोल की कीमत 105 रुपए तक पहुंच जाती है। डीजल की कीमत का निर्धारण भी कमोबेश इसी आधार पर होता है।
आज के दिन में सरकार एक लीटर पेट्रोल पर सरकार करीब 57 रुपए कमा रही है।
और एक लीटर डीजल पर सरकार करीब 46 रुपए कमा रही है। चूंकि हर राज्य में वैट की अलग अलग दरें हैं, इसलिए हर राज्य में तेल की कीमतों में अंतर दिखता है। मध्य प्रदेश में तेल की कीमतों पर सबसे ज्यादा 31 % वैट है।
महाराष्ट्र में 29 %, आंध्र प्रदेश में 28 % वैट लिया जाता है। उत्तराखंड में तेल पर 19 % वैट लिया जाता है। इसीलिए अन्य राज्यों की अपेक्षा यहा पेट्रोल थोड़ा सा सस्ता है।
पेट्रोलियम पदार्थों से होने वाली कमाई केंद्र के साथ राज्यों के खजाने को भी भरती है। इसलिए कोई भी इस मुद्दे पर खुलकर नही बोलता। केंद्र सरकार कहती है, इंटरनेशनल मार्केट में कच्चा तेल महंगा हो रहा है। सरकार कहती है कि हम इंफ्रास्ट्रक्चर पर खूब खर्च कर रहे हैं। औऱ तेल के दाम तेल कंपनियों के हवाले हैं, इसलिए सरकार का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है।
अब सवाल ये है कि लोगों को राहत कैसे मिले?
पहला ये कि सरकार पेट्रोल, डीजल को जीएसटी के दायरे में लाए या फिर सरकार अपनी ओर से सब्सिडी दे। या फिर सरकार घरेलू तेल उत्पादन को बढ़ावा दे
बहरहाल इतना तय है कि अब जनता को तेल की बढ़ती कीमतों के साथ जीने की आदत डाल लेनी चाहिए।