एक पत्थर ने रोका गांव का पलायन, युवक के सपने में आया विशालकाय पत्थर, आज बना पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र

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ALMORA:  क्या कोई पत्थर गांव का पलायन रोक सकता है। क्या कोई पत्थऱ विदेश में रह रहे एक युवा को अपने गांव में आने के लिए मजबूर कर सकता है। क्या कोई पत्थऱ बिना किसी मजबूत आधार के सैकड़ों वर्षों से ज्यों का त्यों संतुलन में बना रह सकता है? आपको ये जानकार हैरानी होगी । लेकिन अल्मोड़ा के सैंकुड़ा गांव में एक ऐसा चमत्कारी पत्थर मौजूद है जिसने ये कल्पना सी लगने वाली बातों को हकीकत में बदला है। यकीन मानिए ये सारी बातें सच हैं।

इस चमत्कारी विशालकाय पत्थर (ठुल ढुंग) की कहानी आफको विस्तार से बताएंगे, लेकिन उससे पहले आपको गांव के एक युवक की कहानी बताते हैं। अल्मोड़ा के सल्ट मनीला क्षेत्र में सैंकुड़ा गांव के विक्रम सिंह बंगारी लंदन में नौकरी करते थे। उन्होंने बचपन में अपने गांव के जंगल में उस विशालकाय पत्थर को करीब से देखा होगा, लेकिन वक्त बीतने के साथ शहरों की चकाचौंध में व्यस्त होते गए।

विक्रम सिंह से देवभूमि डायलॉग ने इस बारे में विस्तार से बात की तो उन्होंने बताया कि एक दिन अचानक उनके सपने में ये पत्थर आया। उन्हें लगा कोई इत्तफाक होगा। लेकिन लगातार 8-10 दिन ये सिलसिला चलता रहा। एक दिन तो विक्रम को सपने में विशालकाय पत्थर की छवि इतनी स्पष्ट दिखी कि उसके कण कण दिखने लगे। विक्रम की मानें तो ये पत्थऱ सदियों से गांव के जंगल में वीराने में पड़ा था, कभी किसी का इस तरफ ध्यान नहीं गया। लेकिन सपने में आकर पत्थर विक्रम को संकेत देने लगा कि गांव लौट चलो, मेरी सुध लो औऱ पहाड़ को संवारो। विक्रम लंदन से दिल्ली शिफ्ट हुए लेकिन पत्थऱ सपने में आकर लगातार पुकार करने लगा, संकेत देने लगा कि तुम्हारी मंजिल दिल्ली नहीं, बल्कि अपना गांव है।

बस फिर क्या था विक्रम सिंह गांव लौट गए। और पत्थर की सेवा में जुट गए। शुरुआत में लोग उन पर हंसते थे, लेकिन विक्रम अपने मिशन में जुट गए। विक्रम सबसे पहले उस पत्थऱ के दर्शन के लिए गए तो एक अलग ही ऊर्जा उनके भीतर पैदा हुई। विक्रम को पत्थर ने गांव के विकास की प्रेरणा दी औऱ उन्होंने होमस्टे शुरू कर दिया। धीर धीरे यहां प्यटक ठहरने आने लगे, गांव की दुकानों में चहल पहल बढ़ने लगी। लोगों की आजीविका होने लगी। जो भी होमस्टे में आता है, इस पत्थऱ के दर्शन के लिए जरूर जाता है। ये पत्थर का चमत्कार ही है कि 3 साल पहले जहां कोई नहीं जा पाता था, वहां पत्थऱ के दर्शन के लिए सालाना 500-600 लोग आ रहे हैं। विक्रम बंगारी के प्रयासों से हर साल 14 जनवरी को यहां उत्तरैणी मेला भी आय़ोजित होने लगा है। मेले में हजार से ज्यादा लोग शिरकत करते हैं। यहां आने वाले लोगों के कारण सीधे तौर पर गांव के लोगों की आजीविका सुधरने लगी है। गांव के डेढ़ दर्जन लोग रोजगार से जुड़ गए हैं। जो लोग पलायन का मन बना रहे थे, विक्रम को देखकर वो गांव में ही रुक गए हैं। औऱ विक्रम इसका श्रेय चमत्कारी पत्थर को ही देते हैं। यानी ये चमत्कारी पत्थऱ गांव से पलायन भी रोक रहा है।

विक्रम सिंह का मानना है कि इस पत्थर ने उन्हें गांव के लिए कुछ करने की प्रेरणा दी। गांव के लोगों ने सर्वसम्मति से इस चमत्कारी पत्थर के दर्शन के लिए अब टिकट की व्यवस्था लागू कर दी है। खास बात ये है कि इससे होने वाली कमाई गांव के विकास पर ही खर्च होती है। गांव के लोग चाहते हैं कि ये ठुल ढुंग पर्यटन का बड़ा केंद्र बने। ग्रामीण चाहते हैं कि पर्यटन विभाग इसका संज्ञान लेकर इसे अन एक्सप्लोर्ड टूरिस्ट डेस्टिनेशन का दर्जा दे।

 

 

 

 

 

 

 

 

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