जलप्रलय से हाहाकार, 10 साल बाद फिर हुआ चमत्कार
हिमाचल में बारिश ने भारी तबाही मचाई है। तस्वीरें कुछ वैसी ही हैं जैसी 2013 की उत्तराखंड आपदा की थी। सवाल वही कि क्या हमने कुछ सबक लिया? अब भी नहीं चेते तो प्रकृति से छेड़छाड़ का गंभीर नतीजा भुगतना होगा।
पानी में समाते घर, टूटते पुल, जल प्रलय से दो हिस्सों में टूटती सड़कें, नाव की तरह पानी में बहते वाहन और नदियों का रौद्र रूप।
हिमाचल में भीषण बारिश और बाढ़ से तबाही मची है। तबाही की कुछ वैसी ही, तस्वीरें दिख रही हैं, जैसी ठीक 10 साल पहले 2013 की आपदा में उत्तराखंड में दिखी थी। तब केदारनाथ धाम में मौत का सैलाब आया था, इस बार हिमाचल के कुल्लू, किन्नौर, लाहौल, मनाली, सोलन, सिरमौर, और मंडी में मौत बरस रही है।
जरा केदारनाथ आपदा के वक्त की इन तस्वीरों को देखिए, मंदाकिनी नदी मौत का जो सैलाब लेकर आई, उससे नंदाकिनी, पिंडर, और गंगा विकराल हो उठी। चारों तरफ नदी मौत बनकर बहने लगी। ऐसे ही हालात हिमाचल में भी हैं। व्यास, सतलुज रावी और पार्वती नदी भारी उफान पर है। नदियों की राह में जो भी आ रहा है, वो उसे तिनके की तरह बहा ले जा रही है।
2013 की इन तस्वीरों को देखिए, सोनप्रयाग में नदी के किनारे बसे इन बहुमंजिला भवनों ने पल भर में ही जलसमाधि ले ली। 10 साल बाद हिमाचल में यही दोहराया जा रहा है। कुदरत ने बार बार अलर्ट किया, मगर हम नहीं चेते। मंडी की इन दो तस्वीरों को देखिए, कैसे पानी के तेज बहाव ने इन दो भवनों को नेस्तानबूत कर दिया है।
भारी बारिश ने हिमाचल की सड़कों और पुलों को सबस ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। आप सोचिए 2013 में उत्तराखंड में सैकड़ों पुल नदियों के विकराल वेग में बह गए थे। हिमाचल में भी दर्जनों पुल और सड़कें तिनके की तरह बह रहे हैं।
इन सबके बीच एक तस्वीर ऐसी भी है जिसने प्रकृति के भयानक रूप के बीच चमत्कार की साक्षात तस्वीर पेश की है। याद कीजिए, आज से 10 साल पहले 2013 की भीषण आपदा में मंदाकिनी के भारी सैलाब के बाद भी बाबा केदार का धाम सुरक्षित रहा। भीमशिला ने आकर नदी के बहाव को दो हिस्सों में बांट दिया। जब चारों ओर मौत पसरी थी, तब केदारनाथ मंदिर आपदा के सारे प्रहारों को झेलकर शान से खड़ा था।
10 साल बाद ऐसा ही चमत्कार देखने को मिला है। इस बार हिमाचल के मंडी जिले में ये चमत्कार हुआ है। मंडी जिला बाढ़ और बारिश से सबसे ज्यादा प्रभावित है। चारों तरफ मौत का सैलाब है, लेकिन नदी का रौद्र रूप यहां के प्रसिद्ध पंचवक्त्र मंदिर का कुछ नहीं बिगाड़ सका। उफनाती व्यास नदी पूरे वेग से मंदिर को घेर गई, लेकिन मंदिर अपनी जगह अडिग रहा।
तबाही की इन कहानियों के बीच सवाल यही है कि मानव जाति के लिए इन आपदाओं के संकेत क्या हैं? संकेत एक ही है कि प्रकृति के बनाए नियमों का सम्मान करो। 2013 की चेतावनी और 2023 का जल प्रलय ये बताने के लिए काफी है कि हम अपने पैरों में खुद कुल्हाड़ी मार रहे हैं। आप सोचिए 30 साल से जिस बुनियादी ढांचे को खड़ा किया, चंद घंटों में प्रकृति ने नेस्तानबूत कर दिया। मतलब साफ है, अगर इंसान ने प्रकृति के साथ संतुलन नही बिठाया तो भविष्य में भी प्रकृति के भीषण रौद्र रूप के साक्षात्कार के लिए तैयार रहो।
बहरहाल भोलेनाथ सबका मंगल करें.
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