हाईकोर्ट शिफ्ट करने के उच्च न्यायालय के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया स्टे
DELHI: नैनीताल से उत्तराखंड हाईकोर्ट को शिफ्टि करने का मुद्दा गरमाता जा रहा है। हाईकोर्ट द्वारा इसके लिए शिफ्टिंग के लिए वोटिंग कराई जा रही है। 8 मई को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिए थे कि हाईकोर्ट को नैनीताल से बाहर अन्य स्थान पर शिफ्ट करना आवश्यक है, इसके लिए सरकार एक माह के अंदर स्थान का चुनाव करें। हाईकोर्ट के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अब स्टे लगा दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस संजीव करोली की बेंच ने राज्य सरकार से इस मसले पर जवाब मांगा है। इस मसले पर बहस में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हाईकोर्ट की नई बेंच स्थापित करना संसद का काम है। और हाईकोर्ट का फैसला जनमत कराने जैसा फैसला है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया।
बता दें कि हाईकोर्ट के 8 मई को कहा था कि कोर्ट को शिफ्ट करना आवश्यक है, साथ ही हाईकोर्ट रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिए गए थे कि वो इस मामले में अधिवक्ताओं व वादकारियों से राय लेने के लिए एक पोर्टल बनाएं। सभी लोग 31 मई तक ही अपनी राय रखें। हाईकोर्ट के इस फैसले को उत्तराखंड बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश दिया था कि हाईकोर्ट में काम कर रहे कम से कम 7000 वकीलों के चैंबरों, जजों औऱ कार्मिकों के आवासों, कोर्ट रूम, कॉन्फ्रेंस हॉल कौंटीन, पार्किंग आदि के लिए नैनीताल से बाहर जमीन तलाशी जानी आवश्यक है, इसलिए सरकार एक महीने के भीतर जमीन तलाशे और इसकी रिपोर्ट 7 जून तक कोर्ट में दे।
हाई कोर्ट का मानना था कि वर्तमान स्थान 75 फीसदी प्रतिशत पेड़ों से घिरा है और ऐसे में अगर नई बल्डिंग बनाई जाती है तो पेड़ों को काटना पड़ेगा। इससे बचाव के लिए कोर्ट द्वारा ये भी कहा गया था कि हल्द्वानी के गौलापार में 26 हेक्टेयर का भूमि को नए स्थान के लिए प्रस्तावित किया गया है।.
हालांकि, बार एसोसिएशन और तमाम अधिवक्ता इस फैसले के खिलाफ उतर आए थे और इसे जल्दबाजी में लिया फैसला बताया था। इस मसले पर बार एसोसिएशन में भी मतभेद है। देहरादून बार एसोसिएशन चाहती है कि हाईकोर्ट के लिए नई जमीन देहरादून या हरिद्वार में तलाशी जाए, जबकि हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डीसीएस रावत का कहना था कि यह आदेश राज्य पुनर्गठन विधेयक के विपरीत है और प्रमुख बेंच तय करने का अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास है।