कोसी का कायाकल्प करने वाली समाजसेवी बसंती देवी पद्मश्री से सम्मानित, संघर्ष को मिला सम्मान

Share this news

PITHORAGARH/ ALMORA:  किसी ने सही कहा, मेहनत ऐसे करो कि सफलता खुद शोर मचा दे। पिथौरागढ़ की बसंती देवी के संघर्ष की कहानी भी कुछ ऐसी है। 14 वर्ष की उम्र में पति को खोने के बाद, ससुराल द्वारा ठोकर मारे जाने के बाद भी (Pithoragarh Social Worker Basanti Devi Gets Padmashri) जल जंगल औऱ जमीन को बचाने का संघर्ष जारी रखा। समाजसेवा और कोसी नदी को पुनर्जदीवित करने में उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। साधारण सूती साड़ी और चप्पल पहनें बसंती देवी जब पद्मश्री ग्रहण कर रही थी तो उत्तराखंडियत की सादगी और सरलता उसे झलक रही थी। बसंती देवी को समाजसेवा में उल्लेखनीय कार्यों के लिए पद्म पुरस्कार से नवाजा गया है। लेकिन बसंदी देवी के संघर्ष की कठोर दासतां रही है।

डीडीहाट तहसील की रहने वाली 64 वर्षीय बसंती देवी आधुनिकता की चकाचौंध भरी जिंदगी से दूर हैं। वह आज भी साधारण सा कीपैड वाला मोबाइल फोन चलाती हैं। उसे भी वह ठीक से इस्तेमाल करना नहीं जानती हैं।

कि बसंती देवी का पूरा जीवन संघर्षमय रहा है। 14 वर्ष की उम्र में ही उनके पति का निधन हो गया। ससुराल ने ताने दिए, प्रताड़ना दी जिसके बाद पिता का साथ मिला तो वापस मायके आईं और पढ़ाई में जुट गईं। उन्होंने इंटर पास किया। 12वीं करने के बाद बसंती गांधीवादी समाजसेविका राधा के संपर्क में आईं और उनसे प्रभावित होकर कौसानी के लक्ष्मी आश्रम में ही आकर बस गईं। आश्रम में रहकर ही उन्होंने नदी बचाने के लिए प्रयास किया और पर्यावरण संरक्षण के लिए असाधारण योगदान दिया। महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में भी उन्होंने काफी काम किया है।

 

 

(Visited 649 times, 1 visits today)

You Might Be Interested In