
प्रेरणा: रिवर्स माइग्रेशन करके शहर से गांव लौटा पहाड़ का युवा रवि केमवाल, पुश्तैनी जमीन पर खड़ा किया स्वरोजगार का मॉडल
TEHRI: टिहरी जिले का बागी मठियाण गांव। करीब दर्जनभर परिवार यहां रहते हैं। गांव से तकरीबन 5 किलोमीटर दूर एक निर्जन सा क्षेत्र है, जहां न मोबाइल टावर आता है, न सड़क है। लेकिन एक युवा के जुनून से अब ये निर्जन जगह आबाद है। यहां उम्मीद की खेती लहलहा रही है।
बागी गांव के रवींद्र सिंह (रवि केमवाल) ने भी पलायन की मार सही। पेशे से आईटी प्रोफेशनल रवि के पिता ने बेहतर भविष्य के लिए चंडीगढ़ का रुख किया। परिवार में अन्य लोग भी नौकरी की तलाश में घर से दूर निकल गए। इससे उनकी पुश्तैनी जमीन बंजर होती चली गई। रवि के दादाजी की इच्छा थी कि कोई तो उकी जमीन को संभाले, उसे सरसब्ज करे।
शहर में पले बढ़े रवि ने अपने दादाजी का सपना साकार करने की ठानी और सबकुछ छोड़छाड़ के शहर से गांव लौट गए। अपनी जमीन पर शुरुआत में फूलों की खेती शुरू की। एक आईटी प्रोफेशनल को कास्तकार के रूप में ढलने के लिए संघर्ष करना पड़ा। फूलों का उत्पादन हो पाता, उसे मार्केट मिल पाता उससे पहले कोरोना के चलते लॉकडाउन हो गया और रवि केमवाल का ये छोटा सा प्रयास यहीं पर दम तोड़ गया। बाद में आपदा से काफी मलबा उनके खेतों की तरफ आया। इसके बावजूद रवि ने हौसला नहीं छोड़ा। रवि ने खेती के बारे में गहनता से पढ़ना शुरू किया। और सबसे पहले बगीचों के बीच अपने लिए घर बनाया।
वातावरण और जमीन के मिजाज के हिसाब से रवि केमवाल को कीवी की खेती का आइडिया सूझा। सोलन से कीवी के 36 पौधे मंगाए और उनकी देखरेख में जुट गए। देखते ही देखते रवि कीवी उत्पादन में आत्मनिर्भर बन गए। रवि केमवाल केवल कीवी ही नहीं, बल्कि आड़ू, खुमानी, अखरोट का भी अच्छा उत्पादन कर रहे हैं। इसके साथ साथ सब्जियों की भी खूब पैदावार हो रही है। रवि केमवाल का स्वरोजगार का ये मॉडल हर य़ुवा के लिए प्रेरणा है।
पहाड़ के आम लड़कों की तरह रवि की भी ये शिकायत है कि पहाड़ में अपना स्वरोजगार करने वाले लड़कों की शादी देरी से हो रही है। रवि का मानना है कि लोग अपनी बेटी के लिए शहरों में दूल्हा ढूंढने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं, लेकिन पहाड़ को आबाद रखने वालों से रिश्ता जोड़ने में कतराते हैं।