उत्तराखंड में यहां खुला देश का पहला घास संरक्षण केंद्र, 90 दुर्लभ प्रजातियों को किया गया संरक्षित
रानीखेत (अल्मोड़ा): उत्तराखंड के रानीखेत में देश का पहला घास संरक्षण केंद्र स्थापित किया गया है। वन अनुसंधान केंद्र ने रानीखेत के प्रयासों से स्थापित इस घास संरक्षण केंद्र (India’s first grass conservatory established in Ranikhet) में घास की 90 प्रजातियों को संरक्षित किया गया है। 3 एकड़ में फैले इस केंद्र को कैंपा योजना के तहत तैयार किया गया है। यहां उत्तराखंड के साथ सात अन्य प्रदेशों की घास को भी संरक्षित किया गया है।
वन अनुसंधान केंद्र ने कुछ समय पहले रानीखेत के सौनी में प्रदेश का पहला हिमालयन स्पाइस गार्डन विकसित किया था। वनस्पतियों के संरक्षण में एक और कदम बढ़ाते हुए अनुसंधान केंद्र ने रानीखेत के ही द्वारसों में एक घास संरक्षण केंद्र भी स्थापित कर दिया है। मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी के अनुसार यह देश का पहला घास संरक्षण केंद्र है। इसमें एरोमैटिक, औषधीय, सजावटी, धार्मिक मान्यताओं से जुड़े, पशुओं के चारे से संबंधित, अग्नि प्रतिरोधी और कृषि से संबंधित घास की 90 प्रजातियों को शामिल किया गया है।
इस केंद्र में घास के वैज्ञानिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक महत्व के बारे में भी जानकारी दी गई है। रानीखेत घास संरक्षण केंद्र में रोशा, खस, लेमन घास, जावा, राई, ब्रोम, गिन्नी, किकूई, दोलनी, बरसीम, स्मट, सिरू, कोगोना, दूब, कांसा, ऑस, फेयरी, आइसोलैप्स, जैबरा, कुश, दूब के साथ ही जौ, गेहूं, मंडुवा, मक्का, सरसों, धान, ऑस और बबीला को संरक्षित किया है। यहां राजस्थान की प्रसिद्ध जेवड़ घास भी है। यह घास जानवरों के लिए बेहद पौष्टिक होती है। इसके चलते राजस्थान में दूध बेहद पौष्टिक होता है। नेपाल की टाइगर घास भी यहां है जिससे फूल का झाडू तैयार होता है। नेपाल में महिलाओं की आजीविका का इसे बड़ा साधन माना गया है।