बनभूलपुरा रेलवे अतिक्रमण पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश, प्रभावितों के पुनर्वास की योजना बनाए सरकार
NEW DELHI: हल्द्वानी के बहुचर्चित बनभूलपुरा रेलवे भूमि अतिक्रमण मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट के समक्ष रेलवे और राज्य सरकार ने अपनी जमीन खाली कराने संबंधी दावे प्रस्तुत किए। कोर्ट ने सरकार से कहा कि प्रभावित लोगों के पुनर्वास के बारे में एक माह में बताएं। जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्ज्वल मुयान और जस्टिस दीपांकर दत्ता की अदालत में मामले की सुनवाई हुई।
यह मामला केंद्र सरकार द्वारा 2023 में पारित अंतरिम आदेश में संशोधन के लिए दायर किया गया था, क्योंकि विवाद में भूमि के एक हिस्से में रेलवे ट्रैक और हल्द्वानी रेलवे स्टेशन की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता बताई गई है। आज सुप्रीम अदालत ने केंद्र सरकार की दलीलों को दर्ज कर लिया है
रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि रेलवे स्टेशन के विस्तार के लिए और ट्रैक पर गौलानदी से पानी से कटाव हो रहा है। इस वजह से से रेल विभाग कोअतिक्रमित भूमि की तत्काल आवश्यकता है। रेलवे के स्वामित्व वाली लगभग 30.04 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण होने का दावा किया गया है। कथित तौर पर इस स्थल पर करीब 50,000 लोग 4,365 घरों में रह रहे हैं। सुनवाई के दौरान भूमि के एक हिस्से की तत्काल आवश्यकता को प्रदर्शित करने के लिए कुछ वीडियो और तस्वीरें संदर्भित की गईं, जहां अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचे के अलावा निष्क्रिय रेलवे लाइन को स्थानांतरित करने की आवश्यकता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि जो वहां रह रहे वो भी इंसान हैं, और वे दशकों से रह रहे हैं। अदालतें निर्दयी नहीं हो सकतीं। अदालतों को भी संतुलन बनाए रखने की ज़रूरत है और राज्य को भी कुछ करने की ज़रूरत है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश देते हुए कहा उन परिवारों की पहचान की जाए जिनके प्रभावित होने की संभावना है। सरकार द्वारा पुनर्वास की योजना प्रस्तुत की जाए। केंद्र और राज्य स्तर पर नीतिगत निर्णय की आवश्यकता है। हम राज्य के मुख्य सचिवों को रेलवे अधिकारियों और केंद्रीय मंत्रालय के साथ बैठक बुलाने का निर्देश देते हैं और पुनर्वास योजना लाई जाए जो उचित, न्यायसंगत और सभी पक्षों के लिए स्वीकार्य हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि जिस जमीन का अधिग्रहण किया गया है, उसकी पहचान की जाए। इसी तरह जिन परिवारों के प्रभावित होने की संभावना है, उनकी तुरंत पहचान की जाए और उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने मामला 11 सितंबर के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा कि हम सभी की बात सुनेंगे और सुझाव मांगेंगे । कोर्ट ने कहा कि रेलवे ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है अगर आप लोगों को बेदखल करना चाहते हैं तो नोटिस जारी करें। कोर्ट ने उतराखंड सरकार से भी कहा कि कानूनी रूप से हकदार लोगों का पुनर्वास कर सकती है। प्रभावित लोगो की तरफ से अधिवक्ता सलमान खुर्शीद, उत्तराखंड सरकार की तरफ से अभिषेक अत्रे, रेलवे की तरफ से ऐश्वर्य भाटी, कार्तिक जयशंकर, पीबी सुरेश ने पैरवी की
ये है पूरा मामला
2013 में एक जनहित याचिका में कहा गया कि रेलवे स्टेशन के पास गौला नदी में अवैध खनन हो रहा है। याचिका में कहा गया कि अवैध खनन की वजह से ही 2004 में नदी पर बना पुल गिर गया। याचिका पर कोर्ट ने रेलवे से जवाब मांगा। रेलवे ने 1959 का नोटिफिकेशन, 1971 का रेवेन्यू रिकॉर्ड और 2017 का लैंड सर्वे दिखाकर कहा कि यह जमीन रेलवे की है इस पर अतिक्रमण किया गया है। हाईकोर्ट में यह साबित हो गया कि जमीन रेलवे की है। इसके बाद ही लोगों को जमीन खाली करने का नोटिस दिया गया। लोगों ने जमीन खाली करने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से इन लोगों का भी पक्ष सुनने को कहा। लंबी सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने इस इलाके में अतिक्रमण की बात मानी। बीते 20 दिसंबर को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हल्द्वानी में रेलवे भूमि से अतिक्रमण की बात मानते हुए इसे हटाने का आदेश दे दिया। लेकिन जैसे ही अतिक्रमण हटाने की तैयारी शुरू होने लगी, प्रभावितों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर भी स्टे लगा दिया था।