साहस, साहित्य, संस्कृति, स्पोर्ट्स में उल्लेखनीय काम करने वाली 13 महिलाएं तीलू रौतेली स्त्री शक्ति पुरस्कार से सम्मानित
DEHRADUN: 8 अगस्त को वीर बाला तीलू रौतेली का जन्मदिन मनाया जाता है। इस अवसर पर हर साल की तरह इस बार भी साहित्य, संगीत, संस्कृति संवर्धन, खेल, समाजसेवा और साहसी कार्यों के लिए राज्य की 13 महिलाओं को तीलू रौतेली स्त्री शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही अपने अपने क्षेत्र में बेहतर काम करने वाली 32 आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी सम्मानित किया गया
तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित 13 वीरांगनाओं में गढ़वाली लोकगायन के क्षेत्र में बेहतर काम करने वाली डॉ माधुरी बड़थ्वाल, सामाजिक क्षेत्र में गीता गैरोला, शकुंतला दताल और रीना उनियाल, साहित्य के क्षेत्र में सोनिया आर्या, खेल के क्षेत्र में प्रीति गोस्वामी, नेहा देवली, संगीता राणा, अंकिता ध्यानी और पैरा बैडमिंटन में ननदीप कौर को सम्मानित किया गया. इसी तरह साहसिक कार्य के लिए विनीता देवी, हस्तशिल्प के क्षेत्र में नर्मदा देवी रावत के साथ ही विज्ञान के क्षेत्र में सुधा पाल को वित्तीय वर्ष 2023-24 के तहत तीलू रौतेली पुरस्कार से समानित किया गया।
72 साल की शकुंतला का जीवन समाज को समर्पित
72 साल की शकुंतला दताल सामाजिक कार्यकर्ता हैं। पिथौरागढ़ जिले के सीमांत गांव में रहती हैं। शकुंतला ने चीन सीमा से सटे सीमांत गांव को सड़क से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई। टीकाकरण अभियान, पैसा जमा करना, वृक्षारोपण अभियान के साथ ही महिलाओं को जागरूक करने का काम कर रही हैं। साथ ही कहा कि वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन और किसानों को पैसा दिलाने का काम अपने संसाधनों से किया है। सामाजिक कार्य करते-करते उन्होंने राजनीति में भी कदम रखा, लिहाजा कांग्रेस पार्टी में वो कई पदों पर भी रही है। उनके उल्लेखनीय काम को देखते हुए 72 साल की उम्र में उनको तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सास को बचाने गुलदार से भिड़ गई विनीता
रुद्रप्रयाग जिले की रहने वाली विनीता देवी ने 27 जून 2024 को अपनी सास के साथ जंगलों में घास लेने गई थी। इसी दौरान गुलदार ने उनकी सास पर हमला कर दिया। ऐसे में अपनी सास को बचाने के लिए गुलदार से लड़ पड़ीं। इस दौरान गुलदार ने इनके ऊपर भी हमला कर दिया और यह भी घायल हो गईं।लेकिन इनके साहस के आगे गुलदार को भी पीछे हटना पड़ा। इस वीरता पूर्ण कार्य के लिए उन्हें तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित किय।
लोकविधा को संरक्षण दे रही हैं माधुरी बड़थ्वाल
पद्मश्री डॉ माधुरी बड़थ्वाल किसी परियच की मोहताज नहीं हैं। उत्तराखंड के लोकगीतों को संरक्षित करने और उन्हें अगली पीढ़ी तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभा रही हैं। डॉ माधुरी उत्तराखंड से लोक संगीत की पहली महिला शिक्षिका रही हैं। साथ ही उनको आकाशवाणी की पहली महिला संगीतकार होने का गौरव भी हासिल है।
इनको मिला आंगनबाड़ी पुरस्कार
अल्मोड़ा से देवकी और गुड्डी देवी, बागेश्वर से कमला खेतवाल, चमोली से धनेश्वरी देवी, अनीता देवी, पुष्पा देवी, चंपावत से सीमा जोशी, मंजू बिष्ट, देहरादून से रजनी गुलेरिया, प्रियतमा सक्सेना, हरिद्वार से रश्मी शर्मा, रेशमा, नैनीताल से हंसा मेहरा, दुर्गा बनौला व शोभा बौडाई, पौड़ी गढ़वाल से कविता देवी, जयाभारती देवी, उर्मिला देवी, दमयंती देवी, पिथौरागढ़ से भागीरथी देवी, बीनू धामी, सरोज द्विवेदी, रुद्रप्रयाग से विधि रौतेला, टिहरी गढ़वाल से समा पंवार, जुप्पा देवी, पिंकी, ऊधमसिंह नगर से आरती, समीता श्रीवास्तव, भारती देवी, अंजुरानी चौहान एवं उत्तरकाशी जिले से सोनू और सुषमा।