क्या गढ़वाल लोकसभा सीट से संजीवनी ले पाएगी कांग्रेस! गोदियाल के दम और भाजपा के स्टारडम के बीच कड़ा मुकाबला
लोकसभा चुनाव के पहले चरण के लिए उत्तराखंड में पाचों सीटों पर 63 प्रत्याशियों ने नामांकन किया है। इनमें सबसे ज्यादा चर्चा गढ़वाल संसदीय क्षेत्र की हो रही है। यहां कांग्रेस के गणेश गोदियाल और भाजपा के अनिल बलूनी के बीच कड़ा मुकाबला नजर आ रहा है। नामांकन के दौरान जहां अनिल बलूनी ने स्मृति इरानी के रोड शो के साथ अपना स्टारडम दिखाया वहीं, गणेश गोदियाल ने अपने बूते समर्थकों का हुजूम जुटाकर भाजपा की परेशानियां बढ़ा दी हैं।
चमोली की नीति माणा घाटी से लेकर तराई के रामनगर तक फैले गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र में कई चुनौतियां हैं। इस बार भाजपा हो या कांग्रेस दोनों पार्टियों ने ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है जिनकी जनता के बीच पर्याप्त स्वीकार्यता है। भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी ने राज्यसभा सांसद रहने के दौरान गढ़वाल क्षेत्र के अधिकांश इलाके में अपनी सक्रियता दिखाई तो वाक्पटुता में माहिर गणेश गोदियाल अपने सियासी अनुभव बेहतर मैनेजमेंट शैली को लेकर मैदान में हैं। अनिल बलूनी की नामांकन रैली में केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी की मौजूदगी में कई महिलाएं उनकेसाथ फोटो खिंचाने को आतुर दिखी। भीड़ भी ठीकठाक थी, लेकिन सुरक्षा कारणों से रामलीला मैदान का अगला हिस्सा कुछ खाली सा था। अब तक भाजपा गढ़वाल लोकसभा सीट पर भी इस चुनाव को केकवॉक मानकर चल रही थी। लेकिन एक दिन बाद पासा पलटा गणेश गोदियाल ने । बिना किसी स्टार प्रचारक के गणेश गोदियाल ने इतनी भीड़ जुटाई की रामलीला मैदान छोटा पड़ गया। भाजपा की रैली भी बौनी नजर आने लगी। इस भीड़ को देखकर जहां भाजपा हैरत में है। वहीं कांग्रेस के मुरझाए चेहरों पर नई रौनक है। गणेश गोदियाल जिस तरह बलूनी को टक्कर दे रहे हैं उससे कांग्रेसियों के झुके हुए कंधे फिर से उचकने लगे हैं। सरसरी तौर पर ये मुकाबला बेहद कांटे का नजर आ रहा है।
लेकिन क्या गोदियाल सच में पासा पलट सकते हैं? 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी तीरथ सिंह रावत को 5 लाख से ज्यादा वोट मिले थे जबकि कांग्रेस प्रत्याशी मनीष खंडूड़ी ने महज 2 लाख वोट हासिल किए थे। इस तरह हार जीत का अंतर 3 लाख वोटों का था। गणेश गोदियाल के लिए सबसे बडी चुनौती इसी 40 फीसदी के अंतर को पाटने की होगी। इसके लिए गोदियाल के पास बेहतर मौका भी है। गोदियाल साफ छवि के नेता हैं, उन पर कोई दाग नहीं है, पहाड़ के विकास के लिए उनकी साफ सोच है। अंकिता भंडारी हत्याकांड, अग्निवीर योजना, जोशीमठ भू धंसाव, जैसे ज्वलंत मुद्दों पर गोदियाल आक्रामक रुख अपना रहे हैं। रुद्रप्रयाग और चमोली जिलों में बद्री केदार मंदिर समिति का अध्यक्ष रहते हुए गोदियाल की पकड़ कायम है। अंकिता हत्याकांड का असर पूरे पौड़ी जिले पर हो सकता है। अग्निवीर के मुद्दे पर गोदियाल शुरू से ही मुखर रहे हैं। स्थानीय भाषा में आम वोटरों से जुड़ने की कला गोदियाल को अलग बनाती है। लेकिन स्टार प्रचारकों का अभाव, पार्टी कैडर की कमजोर हालात गोदियाल के लिए बडी चुनौती बने हुए हैं। गोदियाल ने भीड़ तो बहुत जुटाई है लेकिन क्या ये वोट में तब्दील हो पाएगी और क्या ये टेंपो 19 अप्रैल तक बरकरार रह पाएगा, ये देखना दिलचस्प होगा।
दूसरी तरफ भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी दूसरा बार संसदीय पारी खेलने के लिए तैयार हैं। बलूनी की सबसे बड़ी कमजोरी उनका जनता के साथ सीधा कनेक्शन न होना है। बलूनी इससे पहले भले ही राज्यसभा सांसद रहे हैं, लेकिन रैलियों की भीड़ को वोंटों में कैसे बदलना है इसका उन्हें अनुभव नहीं है। दूसरी बात ये कि वे 19 साल बाद कोई भी सीधा चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने आखिरी चुनाव 2005 में कोटद्वार विधानसभा का उपचुनाव लड़ा था। इन 19 साल में चुनाव लड़ने के तौर तरीकों और प्रचार की शैली में बहुत अंतर आ गया है। उनके विरोधी आरोप लगाते हैं कि बलूनी दिल्ली में रहते हैं। ऐसे ये देखना दिलचस्प है कि बलूनी आम वोटर के दिल में कितनी जगह बना पाते हैं।
हालांकि इलाका कोई भी हो, चेहरा पीएम मोदी का ही है। प्रधानमंत्री का नाम और चेहरा किसी भी उम्मीदवार के लिए संजीवनी से कम नहीं है। बलूनी भी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं। गणेश गोदियाल की भीड़ को काटने के लिए बीजेपी के पास प्लान है कि आने वाले दिनों में गढ़वाल क्षेत्र में पीएम मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ की ताबड़तोड़ रैलियां होंगी। जाहिर है ताबड़तोड़ स्टार प्रचारकों की रैलियों से अंतिम समय में वोट स्विंग जरूर होगा। बलूनी की मजबूत कड़ी बीजेपी का संगठनिक ढांचा है। बूथ लेवल पर भाजपा कैडर हर समय चुनावी मोड में रहता है। बीजेपी का बूथ मैनेजमेंट किसी तूफान की हालत में भी अपने वोट शेयर को बहुत ज्यादा हिलने नहीं देगा। इसलिए पिछले चुनाव में हार जीत का 40 फीसदी का जो अंतर था, गोदियाल के दम से वो नीचे भी गिरता है, तब भी बलूनी आगे ही रहेंगे। इसके अलावा बलूनी जनता को राज्यसभा सांसद के तौर पर किए गए काम गिनवा रहे हैं। इगास अभियान, मेरा वोट मेरे गांव अभियान से बलूनी ये संदेश दे रहे हैं कि वे गंभीर बीमारी के बाद भी पहाड़ की संस्कृति से जुड़े हुए हैं। साफ और ईमानदार छवि होना बलूनी की बडी राजनीतिक पूंजी साबित हो सकता है।
बहरहाल ये देखना दिलचस्प होगा कि दिलचस्प मोड़ पर पहुंच चुके इस चुनाव में 19 अप्रैल को जनता किसे जीत का तोहफा देती है।
— पंकज नैथानी