12 साल में एक बार खिलता है यह अद्भुत फूल, जानिए कंडाली फेस्टिवल की अनोखी कहानी

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PITHORAGARH : कंडाली, बिच्छू घास या सिंसौण। पहाड़ में रहने वालों को इसकी याद आज भी ताजा होगी। लेकिन क्या आपने कंडाली के फूल देखे हैं? क्या आपने कभी सुना है कि कंडाली का भी फेस्टिवल होता है? पिथौरागढ़ की चौदास घाटी में इन दिनों खिले कंडाली के फूल हर किसी के आकर्षण का केंद्र हैं। आपको बता दें कि ये कंडाली, बिच्छू घास से अलग है। बिच्छू घास का वानस्पतिक नाम Urtica dioica है जबकि कंडाली का बोटेनिकल नाम Aechmanthera gossypina है। इस फूल को जोंटिला भी कहते हैं। खास बात ये है कि कंडाली का ये फूल 12 साल में एक बार खिलता है। और इसी दुर्लभ संयोग को सेलिब्रेट करने के लिए चौदास वैली में कंडाली फेस्टिवल मनाया जाता है। पिथौरागढ़ के अलावा नैनीताल और चंपावत में भी इस बार कंडाली का फूल देखा गया है।

मशहूर फोटोग्राफर अनूप साह की खींची कंडाली के फूल की तस्वीर

 

12 में खिलता है कंडाली का फूल

चलिए अब कंडाली के फूल से जुड़ी कुछ दिलचस्प बात आपको बताते हैं। इस फूल को जाने माने फोटोग्राफर पद्मश्री अनूप शाह ने आईडेंटिफाई किया है। अनूप साह कहते हैं कि उन्होंने इस फूल की पहली साइकिल 1975 में देखी और उसके बारह साल बाद उन्होंने यह फूल 1987 में दोबारा देखा। यह फूल  1999 और फिर 2011 में देखा गया और अब ठीक बारह साल बाद 2023 में कुमाऊं की पहाड़ियां कांडाली के फूलों से गुलजार हुई हैं।

लैंडस्केप फोटोग्राफर सुधांशु कन्नौजिया ने यह फूल लोहाघाट में उगा हुआ देखा, उनकी मानें तो पहली बार यह लोहाघाट मे देखा गया है।

फोटोग्राफर सुधांशु कन्नैजिया की खींची तस्वीर

कंडाली उत्सव

अक्टूबर महीने के आखिर में पिथौरागढ़ की चौदास वैली में  इस खूबसूरत फूल के स्वागत के लिए कंडाली फेस्टिवल मनाया जाता है। कंडाली उत्सव बुरी शक्तियों पर विजय पाने का उत्सव है। कन्डाली का यह त्योहार एक सप्ताह तक चलता है तथा सम्पूर्ण घाटी में एक ही तिथि को प्रारम्भ किया जाता है। घाटी के प्रत्येक गाँव में आटे और जौ के मिश्रण से शिवलिंग बनाकर पूजा की जाती है। पूजा के बर्तन चाँद, कांसायातमा धातु से निर्मित होते हैं। प्रत्येक घर के आँगन के एक कोने को मंदिर का रूप देकर पूजा आरम्भ की जाती है। यहाँ शिवलिंग के अतिरिक्त सभी हिन्दू देवी-देवताओं को पूजा स्थल पर उचित सम्मान दिया जाता है।

पूजा के स्थान को मदिरा, दूध, घी, गोमूत्र, पानी और चावल से पूजा जाता है, तत्पश्चात् देवताओं का यशोगान किया जाता है। तथा चावल आकाश को ओर छिटके जाते हैं। ठीक इसी समय पूजा में सम्मिलित अन्य लोग चाकू को तांबे के बरतन के साथ रगड़कर एक विशेष प्रकार की आवाज भी उत्पन्न करते रहते हैं। यह शायद बुरी आत्माओं को दूर रखने के उद्देश्य से किया जाता है। इस अवसर पर घाटीवासी देवतओं से समृद्धि का निवेदन करते हैं। पूजा अवसर पर पूरी बिरादरी को अन्नादि का भोजन भी कराया जाता है।

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