वैष्णो देवी के बाद माता का दूसरा वैष्णवी शक्तिपीठ है द्रोणागिरी धाम, जहां का हनुमान जी से है सीधा कनेक्शन

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#DevbhoomiDialogue की 9 दिन 9 देवियां श्रृंखला में आज द्वितीय #नवरात्रि पर कीजिए, द्वाराहाट स्थित मां #द्रोणागिरी या दूनागिरी के दर्शन। द्रोणागिरी माता को #वैष्णवी #शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है।  दरअसल वैष्णो देवी के बाद उत्तराखंड के कुमाऊं में “दूनागिरि” दूसरी वैष्णो शक्तिपीठ है। (Dronagiri mata, doonagiri temple almora, shardeeya navratri)

मंदिर निर्माण के बारे में  यह कहा जाता है कि त्रेतायुग में जब लक्ष्मण को मेघनात के द्वारा शक्ति लगी थी | तब सुशेन वेद्य ने हनुमान जी से द्रोणाचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था | हनुमान जी उस स्थान से पूरा पर्वत उठा रहे थे तो वहा पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिरा और फिर उसके बाद इस स्थान में दूनागिरी का मंदिर बन गया |

कत्यूरी शासक सुधारदेव ने 1318 ईसवी में मंदिर निर्माण कर दुर्गा मूर्ति स्थापित की।इतना ही नहीं मंदिर में शिव व पार्वती की मूर्तियाँ विराजमान है। हिमालय गजिटेरियन के लेख ईटी एडकिंशन के अनुसार मंदिर होने का प्रमाण सन् 1181 शिलालेखों में मिलता है । इस पर्वत पर पांडव के गुरु द्रोणाचार्य द्वारा तपस्या करने पर इसका नाम द्रोणागिरि भी है | पुराणों उपनिषदो व इतिहासवादियों ने दूनागिरी की पहचान माया-महेश्वरी या प्रकृति-पुरुष व दुर्गा कालिका के रुप में की है।

 

दूनागिरी मंदिर की मान्यताये

दूनागिरी मंदिर की मान्यता यह भी है कि इस महाशक्ति के दरबार में जो शुद्ध बुद्धि से आता है और सच्चे मन से कामना करता है , वह अवश्य पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु मंदिर में सोने और चांदी के छत्र , घंटिया , शंख चढाते है।

द्रोणागिरी मंदिर के बारे में यह भी माना जाता है कि यहां जो भी महिला अखंड दीपक जलाकर संतान प्राप्ति के लिए पूजा करती है | देवी वैष्णवी उसे संतान का सुख प्रदान करती है।

मंदिर में लगी हुई हजारो घंटिया प्रेम , आस्था और विश्वास की प्रतीक है, जो भक्तों का माँ दूनागिरी के प्रति है।

दूनागिरी मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है | प्राकृतिक रूप से निर्मित सिद्ध पिण्डियां माता भगवती के रूप में पूजी जाती हैं। दूनागिरी मंदिर में अखंड ज्योति का जलना मंदिर की एक विशेषता है | दूनागिरी माता का वैष्णवी रूप में होने से इस स्थान में किसी भी प्रकार की बलि नहीं चढ़ाई जाती है | यहाँ तक की मंदिर में भेट स्वरुप अर्पित किया गया नारियल भी मंदिर परिसर में नहीं फोड़ा जाता है |

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