उत्तराखंड का बारहनाजा, स्वाद और सेहत का खजाना

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डायलॉग डेस्क:  बारहनाजा का शाब्दिक अर्थ है ‘बारह अनाज’। उत्तराखंड में बारहनाजा (Barahnaja the complete dose of nutrition, crop cycle) को सिर्फ बारह अनाज ही नहीं मानते, बल्कि ये तरह-तरह के रंग-रूप, स्वाद और पौष्टिकता से परिपूर्ण दलहन, तिलहन, शाक के साथ ही भाजी, मसाले और रेशा मिलाकर 20-22 प्रकार के अनाज आते हैं। कुल मिलाकर बारहनाजा शुद्धता औऱ पौष्टिकता की गारंटी है।

पहाड़ में मंडवा (रागी) और झंगोरा (सांवा) ही मुख्य खाद्यान्न है। बारहनाजा यानी बारह तरह के अनाज। इसमें 12 अनाज हो यह जरूरी नहीं। अलग-अलग क्षेत्रों में 20 के लगभग प्रजातियां शामिल हैं। खरीफ की फसलों में एक फसलचक्र अपनाया जाता है। बारहनाजा परिवार में कोदा (मंडुवा), मारसा (रामदाना), ओगल (कुट्टू), जोन्याला (ज्वार), मक्का, राजमा, गहथ (कुलथ), भट्ट( पारंपरिक सोयाबीन), रैंयास (नौरंगी), उड़द, सुंटा (लोबिया), रगड़वास, गुरूंश, तोर, मूंग, भगंजीर, तिल, जख्या, भांग, सण (सन), काखड़ी (खीरा) आदि शामिल हैं।

बारहनाजा में केवल अनाज ही नहीं हैं,  बल्कि पहाड़ की पूरी कृषि संस्कृति समाहित है। बारहनाजा प्रणाली पर वैज्ञानिक दृष्टि डालें तो इसके कई वैज्ञानिक पहलू उजागर होते हैं। बारह अनाजों की मिश्रित खेती जिसे मुख्यतः चार या पांच श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। अनाज जैसे मंडुआ, चौलाई, उगल, ज्वान्याला तथा मक्का जो कि कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, लोह तथा ऊर्जा के प्रमुख स्रोत माने जाते हैं तथा पशुचारे के लिए भी प्रयुक्त किये जाते हैं। दलहनी फसलों मे राजमा, उड़द, लोबिया, भट्ट तथा नौरंगी आदि जो कि प्रोटीन का मुख्य स्रोत मानी जाती हैं। तिलहनी फसलों मे तिल, भंगजीर, सन्न तथा भांग जो तेल व खल एवं रेशा उत्पादन के लिए प्रयुक्त होती हैं। सब्जियों में उगल, चौलाई तथा मसाले में जख्या आदि, फलों के रुप में पहाडी ककड़ी का उत्पादन किया जाता

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