लोकसभा चुनाव: मतदान से क्यों पीछे रहा उत्तराखंड का वोटर, जानिए तीन बड़े कारण
DEHRADUN: लोकसभा चुनाव के लिए उत्तराखंड की सभी 5 सीटों पर मतदान शुक्रवार को शांतिपूर्ण संपन्न हो चुका है। तमाम कोशिशों के बाद भी प्रदेश में लोकसभा चुनाव का मत-प्रतिशत पिछले चुनाव के मुकाबले कम रहा। राज्य में 55.89 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। निर्वाचन आयोग द्वारा जारी मतदान के ये आंकड़े रात्रि 10 बजे तक के हैं। यह पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में लगभग 5 प्रतिशत कम है। 2019 में उत्तराखंड में 61 फीसदी वोटिंग हुई थी।
लोकसभा क्षेत्र के हिसाब से देखें तो हरिद्वार में सबसे ज्यादा वोटिंग हुई जबकि अल्मोड़ा में सबसे कम मतदान हुआ। चुनाव आयोग कई महीने से मतदान का प्रतिशत बढ़ाने की जद्दोजहद में लगा था। इसके लिए नुक्कड़ नाटक, रैली, गोष्ठी आयोजित करने के अलावा मीडिया व इंटरनेट मीडिया के माध्यम से भी मतदाताओं को जागरूक किया गया। यहां तक कि मतदान के दिन भी मतदाताओं को प्रोत्साहित करने के लिए पिंक बूथ, सेल्फी प्वाइंट जैसी पहल की गई। लक्ष्य था कि 75 फीसदी मतदान कराया जाए, लेकिन उससे काफी पीछे अटक गए। आइये काऱणों को जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर क्यों पोलिंग के प्रति वोटर की बेरुखी रही
किसी भी चुनाव में चुनावी माहौल वोटरों का मूड बदलने के लिए बडा कारण होता है। लेकिन इस लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दल भी प्रचार का पहले जैसा माहौल नहीं बना पाए। गढ़वाल सीट पर गणेश गोदियाल औऱ टिहरी में बॉबी पंवार की रैलियों को छोड़ दें तो अन्य प्रत्याशियों के चुनावी कार्यक्रमों के प्रति लोगों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसका असर मत प्रतिशत पर साफ नजर आया।
अपने क्षेत्र की लगातार उपेक्षा कम वोटिंग का सबसे बड़ा कारण बना। सियासी दलों के वादे जब पूरे नहीं हो पाए तो वोटरों ने चुनाव बहिष्कार करके गुस्सा दिखाया। हर जगह नारा गूंज रहा था, रोड नहीं तो वोट नहीं, विकास नहीं तो वोट नहीं। नतीजा 2019 के मुकाबले इस बार मतदान बहिष्कार में बढ़ोतरी दर्ज की गई। 2019 में जहां 10 बूथों पर चुनाव का बहिष्कार हुआ था, वहीं इस बार के चुनाव में यह आंकड़ा 25 को पार कर गया है। देहरादून, चमोली, पौड़ी, पिथौरागढ़, टिहरी, से लेकर काशीपुर तक कई जगहों पर चुनाव बहिष्कार के चलते अधिकतर बूथों पर एक भी वोट नहीं पड़ा। बाकी बूथों पर पर लाख समझाने के बाद भी नगण्य वोटिंग हुई। इसका सीधा असर वोट प्रतिशत की गिरावट के तौर पर देखने को मिला।
अल्मोड़ा लोकसभा क्षेत्र में सबसे कम मतदान दर्ज किया गया इसके बाद गढ़वाल लोकसभा में भी मतदान का आंकडजाड बमुश्किल 50 फीसदी तक पहुंच सका। इसका सबसे बड़ा कारणहै पलायन। अल्मोड़ा, पौड़ी, चमोली, बागेश्वर, पिथौरागढ़ से पलायन के कारण अधिकतर लोग बाहर शहरों में रह रहे हैं। वोट देने के लिए उन लोगों ने गांव पहुंचने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। जो कुछ वोटर वोट देने आना भी चाहते थे, ऐन वक्त पर आवागमन के साधनों की कमी के चलते बूथ तक नहीं पहुंच सके। शादियों के सीजन और अधिकतर वाहनों के चुनाव ड्यूटी में व्यस्त रहने के कारण कई जगह आम लोगों को भी परेशानी उठानी पड़ी।