रेजांगला में आज के ही दिन लड़ी गई थी भीषण जंग, जब 120 भारतीय सैनिकों ने चीन को सिखाया था सबक, मेजर शैतान सिंह ने दिखाया अद्भुत शौर्य

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1962 में भारत चीन युद्ध में नवंबर का महीना बेहद खास है। नवंबर का महीना भारतीय सैनिकों की वीरता, अद्भुत पराक्रम औऱ बलिदान को समेटे हुए है। नवंबर की कंपकंपाती सर्दी में बॉर्डर पर चीन के आक्रमण को ध्वस्त करते हुए भारतीय रणबांकुरों ने वीरता के कई ऐसे इतिहास लिखे, जो सदियों तक याद किए जाएंगे। 17 नवंबर 1962 को नूरानांग की लड़ाई में महावीर चक्र विजेता राइफलमैम जसवंत सिंह ने अकेले 300 चीनियों को मौत के घाट उतारकर अपना सर्वस्व बलिदान दिया था। उसके एक दिन बाद ही 18 नवंबर को रेजांग-ला दर्रे में भी वीरता और शौर्य की ऐसी ही अद्भुत कहानी लिखी गई। रेजांगला की इस लड़ाई को लीड कर रह थे भारतीय सेना के मेजर शैतान सिंह, जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया।

करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर लद्दाख के बर्फीले क्षेत्र में 18 नवंबर की सुबह चीनी सैनिकों ने रेजांग ला के चुसुल सेक्टर में हमला कर दिया। भारत 1962 के युद्ध में पहले ही बड़ा नुकसान झेल चुका था। रेजांगला में 13-कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी तैनात थी, जिसका नेतृत्व कर रहे थे, मेजर शैतान सिंह। अल सुबह हुए दुश्मन के हमले को देखते हुए फौरन मेजर शैतान सिंह ने चार्ली कंपनी के 120 जवानों को 3 टुकड़ियों में बांट दिया। अब तक यह इकलौता इलाका था जो भारत के कब्जे में था।

दुश्मन की फायरिंग होते ही भारतीय जवानों ने तीन तरफ से उसका मुंहतोड़ जवाब देना शुरू कर दिया। जंग में हमारे 5 सैनिक शहीद हो गए, लेकिन चीनियों को भी बड़ा नुकसान हुआ। संदेश आया कि करीब 1200 चीनी सैनिक उनकी तरफ आ रहे हैं, लिहाजा मेजर चाहें तो पोस्ट छोड़कर पीछे हट जाएं। लेकिन मेजर ने पीछे हटने से साफ इनकार कर दिया। मेजर को पता था कि यह वक्त अंतिम रण का है, लिहाजा एक एक सैनिक का हौसला बढ़ाते रहे। गोलीबारी जारी रही और चीनी सैनिक पीछे हट गए। लेकिन थोड़ीदेर बाद बंकर पर एक गोला आकर गिरा। हमारे सैनिकों का असलहा खत्म हो रहा था। मेजर ने आदेश दिया कि एक गोली से एक चीनी सैनिक को मारो और उनके हथियार छीन लो।

इसी बीच मेजर शैतान सिंह की बांह में शेल का टुकड़ा लगा। एक सिपाही ने उनके हाथ में पट्टी बांधी और आराम करने के लिए कहा. पर घायल मेजर ने मशीन गन मंगाई और उसके ट्रिगर को रस्सी से अपने पैर पर बंधवा लिया. उन्होंने रस्सी की मदद से पैर से फायरिंग शुरू कर दी। तभी एक गोली मेजर के पेट पर लगी। जख्मी होने के बाद भी मेजर पूरी ताकत से लड़ रहे थे औऱ जवानों का हौसला बढ़ा रहे थे।

युद्ध के चंद महीनों बाद जब वहां खोजबीन शुरू हुई तो मेजर शैतान सिंह का शव पैर में मशीनगन बांधे बर्फ में पड़ा था। बर्फ में भारतीय जवानो के भी शव थे। इस लड़ाई में चार्ली कंपनी के 114 सैनिक शहीद हुए थे, जबकि 5 युद्धबंदी बनाए गए। वीरता और पराक्रम को देखिए, हमारे 120 सैनिकों ने चीन के 1300 सैनिकों को मौत के घाट उतारा था। यहां चीन की फौज एक इंच भी आगे नही बढ़ पाई युद्धभूमि में अदम्य साहस दिखाने के लिए मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया, जबकि इस टुकड़ी के 5 जवानों को वीर चक्र और 4 को सेना मेडल मिला।

रेजांगला की लड़ाई आज भी अदभुत पराक्रम और शौर्य के लिए जानी जाती है।

 

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