धधक रहे जंगलों के बीच इन लोगों ने जगाई उम्मीद, मगर अफसोस इनसे कुछ नहीं सीखता वन विभाग
एक तरफ उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग ने हाहाकार मचा रखा है दूसरी तरफ कुछ नौजवानों ने उम्मीद भी बधाई है।
उत्तराखंड के इन तीन नौजवौनों का ह्रदय से अभिनन्दन। समाज के साथ मिलकर इन्होने जंगल और पर्यायवरण को बचाने के लिए एक बड़ी लकीर खींची है।सबसे बड़ी बात, ये सारे लोग निस्वार्थ भाव से इस देवतुल्य कार्य को कर रहें हैं।
1-गजेन्द्र पाठक
स्याही देवी शीतलाखेत में कुछ गांव ने मिलकर एक ऐसा माडल तैयार किया जिसकी चर्चा आज दिल्ली में हो रही है। खुद सूबे के मुख्यमंत्री मुक्त कंठ से इस मॉडल की तारीफ कर चुके हैं। इन्होने 1000 हेक्टेयर के आसपास के जंगल को ना सिर्फ आग से बचाया बिल्क उसे हरा भरा कर दिया। इसके लिए स्थानिय महिलाओं से जबरदस्त काम करके दिखाया। ये जंगल कोसी नदी का रिचार्च जोन हैं।
2-चंदन नयाल
ओखलकांडा में चंदन के कामों की चर्चा हर जगह है। पर्यायवरण संरक्षण की दिशा में इन लोगों ने एक शानदार मॉडल खड़ा किया है। अकेले चंदन के प्रयास 6000 से ज्यादा चाल खाल खंतिया, बना चुके हैं। जबकि 58000 से ज्यादा पौंधरोपण कर चुके हैं। उत्तराखंड में ऐसे कई लोग शानदार काम कर रहे हैं। मगर अच्छे काम को कोई पूछने वाला नही है। वन विभाग को ऐसे लोगों के साथ मिलकर एक तंत्र विकसित करना चाहिए ताकि इस अमूल्य संपदा को बचाया जा सके।
3-जगदीश नेगी
भवाली स्थित घोड़ाखाल में उन्होने 300 से ज्यादा चाल खाल खंतिया बनाई। इसका नतीजा ये हुआ ये जंगल दुबारा से हरा भरा हो गया। ये जंगल ही एकमात्र आस शिप्रा नदी का रिचार्जिंग पाईंट है। साथ ही जंगल में आग ना लगे उन्होने समय से पहले ही पूरे जंगल से पिरूल हटा दिया। नतीजा आज बहुत से लोग इस एएनआर विधि को अपना रहे हैं।
ऐसा नही है कि वनाग्नि को रोका नही जा सकता। बस संकल्प लेने की बात है। जन औऱ तंत्र मिलकर इस समस्या का स्थाई समाधान निकाल सकते हैं।
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